बुजुर्ग, गांधीवादी, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भ्रष्टाचार जेहादी के रूप में विख्यात हैं। इसलिए भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने वाला लोकपाल गठन को लेकर उनका अनशन सुर्खियों में आ जाता है। लेकिन अन्ना हजारे समझ नहीं पा रहे हैं कि लोकपाल गठन का मामला सरकार लटकाए रखना चाहती है। दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का अनशन पर बैठना और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि द्वारा 'जल्द' लोकपाल गठन का आश्वासन देकर अनशन तुड़वाना महज औपचारिकता जैसा लगा 23 मार्च को अन्ना हजारे अनशन पर बैठे और 29 मार्च को उन्होंने अनशन तोड़ा। उस समय तक लोग अखबारों में और अखबारों से . भी ज्यादा टीवी चैनलों में अन्ना हजारे तथा रामलीला मैदान को निहारते रहे। उसमें लोकपाल कहीं भी मुद्दा नहीं बना। किसानों का मामल का मामला भी थोड़ा-सा चर्चा में आया। इस अनशन से सिर्फ अन्ना खबरों में आये।लोकपाल जहां डंप था, वहीं है ।सरकार द्वारा भेजे पत्र से सिर्फ इतना पता चला कि चुनाव सुधार की अन्ना की मांग चुनाव आयोग को भेज दी जाएगी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडनवीस ने केंद्र सरकार की ओर से 'आश्वस्त' कर दिया कि लोकपाल का गठन जल्द हो जाएगा और लोकायुक्त के बारे में भी बता दिया कि महाराष्ट्र लोकायुक्त गठन करने वाला पहला राज्य बनेगा। अन्ना हजारे ने जब सरकार को छह महीने का समय देकर सितंबर में फिर से अनशन की धमकी दी तो देवेन्द्र फडनवीस ने 'भरोसा दिलाया कि इसमें छह महीने नहीं लगेंगे ।लोकपाल गठन । के लिए सुप्रीमकोर्ट का आदेश अमल में लाने में सरकारी टालमटोल का एक साल गुजर गया।अदालती अवमानना की जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को बार-बार कोई न कोई सफाई देकर पल्ला झाड़ना पड़ रहा हैइस याचिका की सुनवाई कर रही जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आर. बानूमती की सुप्रीमकोर्ट की पीठ ने 27 अप्रैल, 2017 को केंद्र सरकार को लोकपाल गठन का आदेश दिया। लोकपाल चयन कमेटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य प्रमुख न्यायविद् का पद आठ महीने से रिक्त पड़े होने पर 17 अप्रैल को केंद्र सरकार को सुप्रीमकोर्ट की पीठ के सामने जवाब देना है। गत 6 मार्च को सुनवाई के दिन केंद्र सरकार की ओर से सप्रीमकोर्ट में पेश हए अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल की दलील से दोनों जज संतुष्ट नहीं हुए लोकपाल चयन समिति के सदस्य प्रमुख न्यायविद् सीनियर एडवोकेट पी. पी. राव के सितंबर, 2017 में निधन के बाद से यह पद रिक्त है।लोकपाल एक्ट के अनुसार लोकपाल चयन समिति में प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, लोकसभा में विपक्षी नेता और एक प्रमुख न्यायविद् का प्रावधान है। लोकसभा में विपक्षी नेता वाले मामले पर भी ग्रहण लगा हुआ है। लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को लोकपाल चयन समिति में शामिल करने वाला संशोधन बिल संसद में 2016 से लंबित है।मार्च, 2018 में संसद के बजट सत्र के समय ही सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर लोकपाल चयन समिति की बैठक एक मार्च को बुलायी गयी।6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को जब केंद्र ने बताया तब यह जानकारी बाहर आयी कि एक मार्च को बैठक हुई, जिसमें प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा स्पीकर शामिल हुए। दरअसल किसी भी पार्टी के नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील को लोकपाल से और अन्ना के अनशन से कोई रुचि नहीं है 23 मार्च को ! अन्ना अनशन पर बैठे और उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी करके 12 राज्यों के मुख्य सचिवों को लोकायुक्त गठन प्रक्रिया की ताजा स्थिति से अवगत कराने को कहा। अन्ना हजारे ने 'राइट टु रिकॉल' (जनप्रतिनिधि को ! वापस बलाने वाला अधिकार) जैसे चनाव सधार की पुरानी रट दोहरायी ।लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट संसद से 2013 में पारित हुआ।एक जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने मंजूरी दी और 16 जनवरी, 2014 को लागू हो गया। मई, 2014 से केंद्र में भाजपा सत्ता में है। चार साल में भाजपा समेत किसी पार्टी के सांसद के लिए लोकपाल मुद्दा नहीं बना। 2015 में मुख्यमंत्री बनते ही अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में अपना अलग जनलोकपाल बिल पारित कर लिया। अन्ना ने अपने आंदोलन की शुरुआत ऐसे आकाशी उच्चाधिकार प्राप्त लोकपाल गठन से !की, जिसके दायरे में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सांसद सभी हों। ऐसे लोकपाल का प्रावधान भारतीय संविधान में नहीं है। फिर उसमें सुधार करके प्रधानमंत्री को दायरे में लाने वाला लोकपाल आंदोलन चला लेकिन प्रधानमंत्री से कैफियत मांगने का अधिकार सिर्फराष्ट्रपति और सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को है। लोकपाल एक्ट तो बन गया ।
अब मुद्दा नहीं बनता लोकपाल